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ग़ज़ल
तज दिया तुम ने दर-ए-यार भी उकता के 'फ़राज़'
अब कहाँ ढूँढने ग़म-ख़्वार तुम्हारे जाएँ
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
रोज़ कहाँ से कोई नया-पन अपने आप में लाएँगे
तुम भी तंग आ जाओगे इक दिन हम भी उक्ता जाएँगे
बशर नवाज़
ग़ज़ल
सड़क पे चलते फिरते दौड़ते लोगों से उकता कर
किसी छत पर मज़े में बैठे बंदर देख लेता हूँ
मोहम्मद अल्वी
ग़ज़ल
अधूरे ख़्वाबों से उकता के जिस को छोड़ दिया
शिकन-नसीब वो बिस्तर मिरी तलाश में है
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने
जैसे कोई लम्बे क़िस्से को पढ़ते पढ़ते उकता जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
मैं अपने आप से शर्मिंदा हूँ न दुनिया से
जो दिल में आता है होंटों पे लाता रहता हूँ
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
अधूरे ख़्वाबों से उकता के जिस को छोड़ दिया
शिकन-नसीब वो बिस्तर मिरी तलाश में है