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ग़ज़ल
वही बर्बादी-ए-गुलशन का मूजिब थे और अब भी हैं
चमन सारा हो इस से आश्ना तो क्या तमाशा हो
मोहम्मद फ़य्याज़ हसरत
ग़ज़ल
अपनों ने दिए धोके ग़ैरों ने सताया भी
इस पर भी ग़ज़ल-ख़्वाँ हैं क्या दिल है हमारा भी
साबिर नसीराबादी
ग़ज़ल
'आरज़ी आसाइशों की चाह करना छोड़ दे
फ़िक्र-ए-उक़्बा ज़ह्न में रख फ़िक्र-ए-दुनिया छोड़ दे
सलीम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मेरे लिए क्या शोर भँवर का क्या मौजों की रवानी
मेरी प्यास के साहिल तक है तेरा बहता पानी
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
तू अपनी आवाज़ में गुम है मैं अपनी आवाज़ में चुप
दोनों बीच खड़ी है दुनिया आईना-ए-अल्फ़ाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
क्यों हो मम्नून-ए-क़मर पुर-नूर पैमाने की रात
रोज़-ए-रौशन से भी रौशन-तर है मयख़ाने की रात
सय्यद हुसैन अली जाफ़री
ग़ज़ल
नहीं ऐसा कि कभी शौक़ पर-अफ़्शाँ भी नहीं
दिल को था नाज़ कि वीराँ है सो वीराँ भी नहीं
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
दोस्त ख़ुश होते हैं जब दोस्त का ग़म देखते हैं
कैसी दुनिया है इलाही जिसे हम देखते हैं