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ग़ज़ल
जिस में कुछ होती है उम्मीद-ए-विसाल-ए-मा'शूक़
इतनी खलती नहीं वो गर्दिश-ए-दौराँ मुझ को
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
जिस में कुछ होती है उम्मीद-ए-विसाल-ए-महबूब
इतनी खलती नहीं वो गर्दिश-ए-दौराँ मुझ को
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
न मलाल-ए-हिज्र न मुंतज़िर हैं हवा-ए-शाम-ए-विसाल के
हम असीर अपनी ही ज़ात के किसी ख़्वाब के न ख़याल के
असलम महमूद
ग़ज़ल
वो हिलाल-ए-माह-ए-विसाल है दिल-ए-मेहरबाँ उसे देखना
पस-ए-शाम-ए-तन जो पुकारना सर-ए-बाम-ए-जाँ उसे देखना