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ग़ज़ल
बार-ए-ख़ातिर हुई ये उम्र-ए-गुरेज़ाँ जानाँ
तुझ को समझा था ग़म-ए-हिज्र का दरमाँ जानाँ
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इशरत की वादियों से गुज़रता चला गया
पैहम फ़रेब-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ लिए हुए
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
आह मुज़्तर अब वो जल्वे हैं न वो रानाइयाँ
हर नज़ारा साया-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ हो गया
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
वाह रे पास-ए-वफ़ा अल्लाह री शर्म-ए-आरज़ू
हर नफ़स हमराही-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ में रहा
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
ज़ीस्त आशुफ़्तगी-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ समझे
मौत को सिलसिला-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ समझे
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
हसरत-ए-दीदा-ए-नमनाक रुलाती है मुझे
यादश-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ नहीं जीने देती
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
विदा-ए-शब भी है और शम्अ' पर इक बाँकपन भी है
हदीस-ए-शौक़ भी है क़िस्सा-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ भी
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
'जौहर' न पूछ उम्र-ए-गुरेज़ाँ की सरगुज़श्त
जिस तरह भी गुज़र गई आख़िर गुज़र गई