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ग़ज़ल
ख़मोशी दास्ताँ है इस्मत-ए-उन्वान-ए-हस्ती की
ख़मोशी में निहाँ इस्मत के अफ़्साने भी होते हैं
ज़ेब बरैलवी
ग़ज़ल
बहुत मसरूर हैं वो छीन कर दिल का सुकूँ 'उनवाँ'
हुजूम-ए-ग़म में भी मुझ को हँसी आई तो क्या होगा
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
उनवान चिश्ती
ग़ज़ल
राह-ए-वफ़ा में फूल नहीं हैं ख़ार बहुत हैं 'हस्ती' जी
प्यार का दुश्मन सारा ज़माना पहले भी था आज भी है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
अब वही नज़रें जो देती थीं शुऊ'र-ए-हस्ती
हम को ना-कर्दा गुनाही की सज़ा देती हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
किसी दिन मुझ को ले डूबेगा हिज्र-ए-यार का सदमा
चराग़-ए-हस्ती-ए-मौहूम होगा गुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
गर मेरी शहादत की बशारत नहीं 'परवीं'
फिर क्यूँ है ख़त-ए-शौक़ के उनवाँ ये निशाँ सुर्ख़