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ग़ज़ल
मिरी मौज-ए-रवाँ की सब रवानी ख़त्म कर देगा
बना देगा वो हर उन्वान-ए-उम्र-ए-राएगाँ मुझ को
कामरान नदीम
ग़ज़ल
शिकवा-संज-ए-उम्र-ए-फ़ानी है बयान-ए-आरज़ू
ख़त्म होती ही नहीं है दास्तान-ए-आरज़ू
क़ाज़ी सय्यद मुश्ताक़ नक़्वी
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इक ख़लिश को हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ रहने दिया
जान कर हम ने उन्हें ना-मेहरबाँ रहने दिया
अदीब सहारनपुरी
ग़ज़ल
कहीं रुकने लगी है कश्ती-ए-उम्र-ए-रवाँ शायद
ज़मीं छूने लगी है अब के हद्द-ए-आसमाँ शायद
ख़ावर एजाज़
ग़ज़ल
बता ये कौन सी मंज़िल है ऐ 'उम्र-ए-रवाँ मुझ को
नज़र आता नहीं ख़ुद का भी अब साया जहाँ मुझ को
दाऊद ख़ाँ राज़
ग़ज़ल
यूँ भी हम मा'रका-ए-उम्र-ए-रवाँ से गुज़रे
इक जहाँ ज़ेर किया एक जहाँ से गुज़रे
ग़ुलामुल्लाह अफ़्सूँ भोपाली
ग़ज़ल
बार-हा जी में ये आई उम्र-ए-रफ़्ता से कहूँ
शाम होने को है ऐ भूले मुसाफ़िर घर तो आ