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ग़ज़ल
रंज-ओ-अलम की बस्ती में हम अब तक तन्हा तन्हा हैं
तुम से थी उम्मीद-ए-वफ़ा सो तुम ने भी इंकार किया
ज़फ़र अनवर
ग़ज़ल
मुद्दत से इक आस लगी है हम भी कभी दीदार करें
एक झलक की बात ही क्या है आप अगर उपकार करें
डॉ. अहमर रिफ़ाई
ग़ज़ल
कैसे कैसे झूट तराशे रिश्तों की सच्चाई ने
कितनी धुँदली रेखाओं को आँखों ने आकार किया
नसीर प्रवाज़
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दाएरे इंकार के इक़रार की सरगोशियाँ
ये अगर टूटे कभी तो फ़ासला रह जाएगा