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ग़ज़ल
मयस्सर मुफ़्त में थे आसमाँ के चाँद तारे तक
ज़मीं के हर खिलौने की मगर क़ीमत ज़ियादा थी
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
मैं अक्सर आसमाँ के चाँद तारे तोड़ लाता था
और इक नन्ही सी गुड़िया के लिए ज़ेवर बनाता था
वाली आसी
ग़ज़ल
ये फ़लक के चाँद तारे हैं बुझे बुझे से सारे
मैं सुना रहा हूँ इन को शब-ए-हिज्र का फ़साना
ज़ीशान नियाज़ी
ग़ज़ल
रुख़ के शैदा चाँद तारे ज़ुल्फ़ पर रातें निसार
तेरे भी ऐ शम्अ-ए-ख़ूबी कितने परवाने बने