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ग़ज़ल
बहार आई है फिर चमन में नसीम इठला के चल रही है
हर एक ग़ुंचा चटक रहा है गुलों की रंगत बदल रही है
आग़ा शाएर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
हम सोच रहे थे उन को अभी वो पर्दा उठा कर आ भी गए
वो फूल मोहब्बत के हम पर अज़-राह-ए-करम बरसा भी गए
सुहैल काकोरवी
ग़ज़ल
शनावर को सदा इस बात का अंदाज़ा होता है
हो उथला सा जहाँ पानी वहाँ गौहर नहीं होते