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ग़ज़ल
कुंज-ए-उज़्लत में मिसाल-ए-आसिया हूँ गोशा-गीर
रिज़्क़ पहुँचाता है घर बैठे ख़ुदा मेरे लिए
मीर अनीस
ग़ज़ल
कुंज-ए-उज़्लत में बिठाया है ख़ुदा ने 'आतिश'
अब जो तुम याँ से हिले पावँ तुम्हारे तोड़े
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
ढकी थी आतिश-ए-गुल ता-सर-ए-दीवार-ए-बाग़ अब के
ख़बर 'उज़लत' को नीं बुलबुल के ख़स-ख़ाना पे क्या गुज़रा
वली उज़लत
ग़ज़ल
चला हूँ 'उज़लत' अब सहरा बगूले की ज़ियारत को
मिलेगा तौफ़ को मजनूँ का बर्बाद आस्ताँ देखें
वली उज़लत
ग़ज़ल
'उज़लत' इस बाग़ में लाला सा हूँ मैं दर्द-नसीब
दिल-ए-ज़ख़्मी से उगा दाग़-ए-नमक-दान के सात