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ग़ज़ल
फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा है और झूटी तसल्ली बस
तअ'ल्लुक़ आप का है क्या सियासत के घराने से
ज़ेबुन्निसा ज़ेबी
ग़ज़ल
बढ़ाओ वा'दा-ए-फ़र्दा पे तुम अपनी इबादत भी
कि फ़र्दा क्या न भूलूँगा मैं फ़र्दा-ए-क़यामत भी
नादिर काकोरवी
ग़ज़ल
सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा
क़यास-आराई का बे-साख़्ता लम्हा रहा होगा
सुबोध लाल साक़ी
ग़ज़ल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा पर ए'तिबार तो है
तुलू-ए-सुब्ह-ए-क़यामत का इंतिज़ार तो है
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
ग़ज़ल
उस ने किया है वादा-ए-फ़र्दा आने दो उस को आए तो
नाम बदल देना फिर मेरा लौट के वापस जाए तो
बर्क़ी आज़मी
ग़ज़ल
किसी के वादा-ए-फ़र्दा में गुम है इंतिज़ार अब भी
ख़ुदा जाने है क्यूँ इक बे-वफ़ा पर ए'तिबार अब भी
शम्स फ़र्रुख़ाबादी
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
फ़रेब-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा बहुत ग़नीमत है
मिज़ाज-ए-दोस्त अगर उस्तुवार रहने दे