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ग़ज़ल
नशा उतरा मगर अब भी तुम्हारी मस्त आँखों से
पिए थे जो मय-ए-उल्फ़त के साग़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
वा'दा कर के भी न तुम आओ तुम्हारा इख़्तियार
हम करेंगे रात-दिन फिर भी तुम्हारा इंतिज़ार
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
मयस्सर हो तो क़द्रे लुत्फ़ भी नेमत है याँ यारो
किसी का वादा-ए-ऐश-ए-दवाम अच्छा नहीं लगता