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ग़ज़ल
अब नज़्अ' का आलम है मुझ पर तुम अपनी मोहब्बत वापस लो
जब कश्ती डूबने लगती है तो बोझ उतारा करते हैं
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो
न काम आए तो वापस दो जो काम आए तो रहने दो
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ज़ुबैर अली ताबिश
ग़ज़ल
हम उन को सोच में गुम देख कर वापस चले आए
वो अपने ध्यान में बैठे हुए अच्छे लगे हम को
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
कोई ज़ंजीर फिर वापस वहीं पर ले के आती है
कठिन हो राह तो छुटता है घर आहिस्ता आहिस्ता