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ग़ज़ल
बयाबाँ की कशिश अब ले उड़ेगी दिल के ज़र्रों को
कि हर हर साँस पर वारफ़्तगी महसूस होती है
जिगर बरेलवी
ग़ज़ल
मैं उस से मुद्दतों के बा'द दोबारा दोबारा मिला हूँ
ख़ुशी तो है मगर वारफ़्तगी गुम हो गई है
सलीम सरफ़राज़
ग़ज़ल
अब उस से बढ़ के भी वारुफ़्तगी-ए-दिल क्या हो
कि तुझ को ज़ीस्त का हासिल बना के भूल गया
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
अपनी इस वारफ़्तगी-ए-शौक़ का मम्नून हूँ
बार-हा मुझ को भरी महफ़िल में तन्हा कर दिया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जो हो चला था दिल को सुकूँ उन के हिज्र में
वो मिल गए तो फिर उसे वारफ़्तगी मिली