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ग़ज़ल
शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है
जिस का वारिस हूँ उसी ख़ाक से ख़ौफ़ आता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
तेरे सदक़े मिरी जाँ तुझ पे मिरा दिल क़ुर्बां
वारिस-ए-कौन-ओ-मकाँ फ़ख़्र-ए-ज़मानी सनमा
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
हम कि मयख़ाने के वारिस थे हैं अब तक तिश्ना-लब
चंद कम-ज़र्फ़ों को सहबा का इजारा मिल गया