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ग़ज़ल
हयात-ओ-मौत का पैग़ाम देता हर-नफ़स 'वासिल'
कभी रू-पोश वो होते कभी जल्वा-गरी होती
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
जनाज़ा देख के 'वासिल' का हो गए बेताब
कफ़न उन्हों ने बिल-आख़िर हटा के देख लिया
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
उन के जल्वों में जो खो जाऊँ तो ढूँडो न मुझे
कौन मिलता है किसे वासिल-ए-जानाँ हो कर
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
इश्क़ पहले ही क़दम पर है यक़ीं से वासिल
इंतिहा अक़्ल की ये है कि गुमाँ तक पहुँचे
मोहम्मद दीन तासीर
ग़ज़ल
पा-ए-महबूब पे सर रख के हुए हम 'वासिल'
ज़िंदगी पाई नई मौत का धड़का भी गया
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
निकात-ए-इश्क़ असरार-ए-ख़ुदा हैं बेगमाँ 'क़ुर्बी'
जने असरार को बुज्या वही हक़ सात वासिल है
क़ुर्बी वेलोरी
ग़ज़ल
'वासिल' के दाग़-ए-दिल से है मंज़िल की रौशनी
वर्ना निकल के आते भला तीरगी से हम
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
उसी के इश्क़ में मिट कर के हो गए 'वासिल'
सबात उसी को है अपना निशाँ रहे न रहे
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
जो भरी दुनिया की संगीन अजाइब-नगरी में
अपना सर आप न फोड़े वो जहन्नम वासिल है
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
जहान-ए-दिल तो है नज़दीक 'वासिल' दूर क्यूँ जाओ
इसी दुनिया में रहता है तुम्हारा मेहरबाँ शायद
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
करम है उन का जो हो जाए 'वासिल'-ए-जानाँ
वहाँ ख़ुदी की न कुछ बे-ख़ुदी की बात करो
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
ग़ज़ल
कारवाँ इश्क़ की मंज़िल के क़रीं आ पहुँचा
ख़ुद मिरे दिल में मिरे दिल का मकीं आ पहुँचा