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ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
किसी और को मिरे हाल से न ग़रज़ है कोई न वास्ता
मैं बिखर गया हूँ समेट लो मैं बिगड़ गया हूँ सँवार दो
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
उस मक़ाम-ए-क़ुर्ब तक अब इश्क़ पहुँचा ही जहाँ
दीदा-ओ-दिल का भी अक्सर वास्ता होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
न ग़रज़ सनम-कदे से न हरम से कोई मतलब
मुझे वास्ता है तुझ से मिरे दिल में तू समा जा