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ग़ज़ल
वो मेरा वहम-ए-नज़र था कि तेरा अक्स-ए-जमील
वो कौन था कि जो मंज़र के दरमियाँ गुज़रा
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
बद-क़िस्मतों को गर हो मयस्सर शब-ए-विसाल
सूरज ग़ुरूब होते ही ज़ाहिर हो नूर-व-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
खुले कुछ पैकर-ए-उम्मीद या ये वहम मिट जाए
नज़र आएँगी धुंदली धुंदली सी परछाइयाँ कब तक
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
गाह क़रीब-ए-शाह-रग गाह बईद-ए-वहम-ओ-ख़्वाब
उस की रफ़ाक़तों में रात हिज्र भी था विसाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
ऐ 'शगुफ़्ता' मुझ को पीरी में ये मिस्रा याद है
बूद अपनी वहम-ए-नाबूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
'फ़राज़' इश्क़ की दुनिया तो ख़ूब-सूरत थी
ये किस ने फ़ित्ना-ए-हिज्र-ओ-विसाल रक्खा है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
गर तअ'ल्ली पर है वहम-ए-इम्तिहान-ए-मय-फ़रोश
बे-निशाँ हो कर निकालेंगे निशान-ए-मय-फ़रोश
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
हुदूद-ए-क़र्या-ए-वहम-ओ-गुमाँ में कोई नहीं
मिरे अलावा मिरे कारवाँ में कोई नहीं