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ग़ज़ल
जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी
इधर है इस बात पर ख़मोशी उधर है पहली से बे-ज़बानी
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
तुझे खो दिया है पा कर ये मिरी है बद-नसीबी
कभी तुम बता तो देते मुझे वज्ह-ए-बद-गुमानी
हंस राज सचदेव 'हज़ीं'
ग़ज़ल
ख़ुश-गुमानी में है दुनिया उस को बद-ज़न देख कर
मुझ से लेकिन उस की वज्ह-ए-बद-गुमानी और है
वलीउल्लाह वली
ग़ज़ल
अदा-ए-बद-गुमानी भी सरिश्त-ए-इश्क़ है लेकिन
ये क्यूँ कर बन गई मिनजुमला-ए-इल्ज़ाम क्या कहिए
अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
जले है देख के बालीन-ए-यार पर मुझ को
न क्यूँ हो दिल पे मिरे दाग़-ए-बद-गुमानी-ए-शमअ'
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हुस्न-ए-ज़न काम लीजे बद-गुमानी फिर सही
बे-तकल्लुफ़ और कीजे मेहरबानी फिर सही
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
बुरा हो बद-गुमानी का वो नामा ग़ैर का समझा
हमारे हाथ में तो परचा-ए-अख़बार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
सितम की आरज़ू ऐ बद-गुमाँ बाक़ी न रह जाए
कोई अहल-ए-वफ़ा का इम्तिहाँ बाक़ी न रह जाए
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
ग़ज़ल
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कहती है
मगर तेरी निगाह-ए-ख़ुश-बयाँ कुछ और कहती है