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ग़ज़ल
वक़ार-ए-शख़्सियत में फ़र्क़ तो पड़ता नहीं लेकिन
असर-अंदाज़ होता है हमारा देखना तुझ को
इक़बाल अशहर कुरैशी
ग़ज़ल
'वक़ार' ऐ काश मेरी उम्र में शामिल न की जाए
वो मुद्दत हाँ वही मुद्दत जो गुज़री उन की फ़ुर्क़त में
वक़ार मानवी
ग़ज़ल
वा'दे हमदम के रहें क्यूँ न अधूरे ऐ 'वक़ार'
इस में लो ख़ुद ही नज़र आता है दम दो-बटा-चार
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
ग़ज़ल
दीवान-ए-बे-नुक़त से है तेरा 'वक़ार-हिल्म'
कहती है अहल-ए-फ़न से ये गौहर-ब-कफ़ हवा
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
ग़ज़ल
कोई काश आ के 'वक़ार' के भी शिकस्ता साज़ को छेड़ दे
वो जुनूँ-नवाज़ हवा चली वो क़बा-ए-ग़ुंचा मसक गई
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
ख़ुशी तो हस्ती-ए-ना-मोतबर न देगी 'वक़ार'
जो रिश्ता ग़म से है वो फिर भी मो'तबर है मियाँ