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ग़ज़ल
मोहब्बत हम ने तुम ने एक वक़्ती चीज़ समझी थी
मोहब्बत जावेदानी है न तुम समझे न हम समझे
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
गुलशन से हम सीख न पाए वक़्ती ख़ुशियों को जीना
जबकि हम ने फ़स्ल-ए-गुल का आना जाना देखा है
अजमल सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
हमें उन अहल-ए-सुख़न में न कर शुमार कि ये
फ़ुग़ाँ भी करते हैं ख़ुश-वक़्ती-ए-फ़ुग़ाँ के लिए
जमीलुद्दीन आली
ग़ज़ल
अम्न-ओ-सुकूँ का ये वक़्फ़ा मरने का इफ़ाक़ा है 'रिज़वी'
चेहरे पर तहज़ीब-ए-उमम के वक़्ती ये बश्शाशी है
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
वाह ऐ मंज़र-ए-ख़ुश-वक़्ती-ए-मंज़िल क़ुर्बां
दश्त-ए-ग़ुर्बत की मसाइब भी मुझे याद नहीं
राज़ चाँदपुरी
ग़ज़ल
शाना इक उम्र से करता है दो-वक़्ती ख़िदमत
तुझ को मालूम है ऐ दीदा-ए-नम क्या होगा