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ग़ज़ल
वसिय्यत की थी मुझ को क़ैस ने सहरा के बारे में
ये मेरा घर है इस की चार-दीवारी नहीं करनी
अफ़ज़ल ख़ान
ग़ज़ल
घर की तक़्सीम वसिय्यत के मुताबिक़ होगी
फिर भी क्यों मुझ को सगे भाई से डर लगता है
मेराज अहमद मेराज
ग़ज़ल
किस तरह तू ने छुपाया है नुमायाँ होना
उन से करता है दम-ए-नज़अ वसिय्यत ये 'अज़ीज़'
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
मिरे अज़ीज़ो मैं जा रहा हूँ मिरी वसिय्यत को याद रखना
जो मुझ सा कोई भी एक देखो उसे जवानी में मार देना