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ग़ज़ल
वेद उपनिषद पुर्ज़े पुर्ज़े गीता क़ुरआँ वरक़ वरक़
राम-ओ-कृष्न-ओ-गौतम-ओ-यज़्दाँ ज़ख़्म-रसीदा सब के सब
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
जिस को जैसा रोग दिया है उस का वैसा चारा-गर
बीमारों तक वेद-जी पहुँचे शाएर इश्क़ के मारों तक
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
लब पे हर-हर है मिरे दिल में है अल्लाह अल्लाह
वेद पढ़ लेता हूँ और हाफ़िज़-ए-क़ुरआँ हूँ मैं
असग़र निज़ामी
ग़ज़ल
मुश्किलों में पड़ गए अपना ख़ुदा कह कर तुझे
तू ही कह दे हम पुकारें और क्या कह कर तुझे
वेद प्रकाश मालिक सरशार
ग़ज़ल
जल्वे को पर्दा पर्दे को जल्वा बना दिया
अहल-ए-नज़र को तुम ने तमाशा बना दिया