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ग़ज़ल
वोट न बेचें क्यूँ बेचारे बस कम्बल के बदले में
जो सर्दी में अपनी चमड़ी बिस्तर करें लिहाफ़ करें
सरदार पंछी
ग़ज़ल
कुछ वोट कमाने की ख़ातिर क्या ख़ून बहाना लाज़िम है
जब बात अम्न की हो हर सू क्या बात बढ़ाना लाज़िम है
ग़ज़ल
नज़र बर्नी
ग़ज़ल
वही है शरह-ए-लिटरेसी वही वोटर हैं ना-ख़्वांदा
हुकूमत पर वही क़ाबिज़ घराना साथ चलता है