aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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शफ़्फ़ाफ़ सत्ह-ए-आब का मंज़र कहाँ गयाआईना चूर चूर है पत्थर कहाँ गया
फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न होनक़्श भी बन जाए और दरिया में भी हलचल न हो
वही जो रिश्ता है कश्ती का सत्ह-ए-आब के साथवही है मेरा तअल्लुक़ भी अपने ख़्वाब के साथ
मुक़ाबिल इक ज़माना और सफ़-आराई मेरीज़माने से भी कब हो कर रही पस्पाई मेरी
ब-सत्ह-आब कोई अक्स-ए-ना-तवाँ न पड़ाहवा गुज़र भी गई और कहीं निशाँ न पड़ा
मंज़िल-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का रास्ता अपनाइएकारवान-ए-ज़िंदगी के रहनुमा बन जाइए
सत्ह-ए-आब पे इक चेहरा हैलहरों में वो रहता होगा
आ गई सतह-ए-आब तक काईसाफ़ ये आबजू करें कैसे
फूल सत्ह-ए-आब पर खिलने लगेहाँ यही अय्याम बेताबी के हैं
यूँही वाबस्तगी नहीं होतीदूर से दोस्ती नहीं होती
सामने उस सफ़-ए-मिज़्गाँ के मैं कल जाऊँगाछिद तो जाऊँगा पर आगे से न टल जाऊँगा
फिर आज पत्थरों से मुलाक़ात कीजिएफिर आज सत्ह-ए-आब पे चेहरे बनाइए
बुलबुले सत्ह-ए-आब को छू करहम को दुनिया का दे गए नक़्शा
सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैंपड़ा हूँ उम्र की दीवार से गिरा हुआ मैं
अक्स-ए-सफ़ा-ए-क़ल्ब का जौहर है आईनावारफ़्ता-ए-जमाल ख़ुद-आरा कहें जिसे
ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़देखती क्या है उलट दे सफ़ की सफ़
एक सफ़ में शजर लगे हुए हैंहम भी इक शाख़ पर लगे हुए हैं
नई ज़मीन नया आसमाँ तलाश करोजो सत्ह-ए-आब पे हो वो मकाँ तलाश करो
ऐसा करें कि सारा समुंदर उछल पड़ेकब तक यूँ सत्ह-ए-आब पे देखेंगे बुलबुला
जब मैं सत्ह-ए-आब पे चलता फिरता हूँदेखने लोग किनारे पर रुक जाते हैं
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