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ग़ज़ल
ये दिन जो पूरा वस्त से है मिरे घर के सेहन में
इस की सहर है दर के पास शाम है बाम के क़रीब
जावेद शाहीन
ग़ज़ल
तुझ से बिछड़ के चलता रहूँ राह पर रवाँ
दरिया का ऐन वस्त हो लेकिन भँवर न हो