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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
तुझ से कहता था कोई या तिरी तस्वीर से आज
आँखें अच्छी तिरी आँखों की मुरव्वत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
शोला-ए-जव्वाला हर यक हल्क़ा-ए-गिर्दाब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
फिर भटकता फिर रहा है कोई बुर्ज-ए-दिल के पास
किस को ऐ चश्म-ए-सितारा-याब वापस कर दिया
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे
मिरे ख़यालों में रंग भर दे मिरे लहू को शराब कर दे