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ग़ज़ल
क़सीदा फ़त्ह का दुश्मन की तलवारों पे लिक्खा है
जो हम ने नारा-ए-तकबीर यल्ग़ारों पे लिक्खा है
राम अवतार गुप्ता मुज़्तर
ग़ज़ल
दिल की गिनती न यगानों में न बेगानों में
लेकिन उस जल्वा-गह-ए-नाज़ से उठता भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कोई ना-मुरादी की यलग़ार सीने को छलनी न कर दे
कहीं दश्त-ए-अन्फ़ास में सब्र का कारवाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
मौसम-ए-गुल में वो उड़ते हुए भौँरों की तरह
ग़ुंचा-ए-दिल पे वो करती हुई यलग़ार आँखें