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ग़ज़ल
कुछ कहने का वक़्त नहीं ये कुछ न कहो ख़ामोश रहो
ऐ लोगो ख़ामोश रहो हाँ ऐ लोगो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको
वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
क्या पिघलता जो रग-ओ-पै में था यख़-बस्ता लहू
वक़्त के जाम में था शोला-ए-तर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
काट दी वक़्त ने ज़ंजीर-ए-तअल्लुक़ की कड़ी
अब मुसाफ़िर को कोई रोकने वाला भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
वक़्त के नादाँ परिंदे ज़ोम-ए-दानाई के गिर्द
ख़ूब-सूरत ख़्वाहिशों के दाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
ये वक़्त का है तक़ाज़ा कि है फ़रेब-ए-नज़र
कि बेटा बाप के क़द से बड़ा दिखाई दे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
इस ‘अक़ीदे ने लिया क़ैसर-ओ-किसरा से ख़िराज
मौत का वक़्त अज़ल से है मुक़र्रर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
निज़ाम-ए-वक़्त का अब ख़ूँ निचोड़ना होगा
कि संग-ए-सख़्त अदाओं की अंजुमन में है