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ग़ज़ल
दिन मुझे हर दिन बना लेता है अपना यर्ग़माल
रात जब आती है तो ख़ुद को छुड़ा लाता हूँ मैं
अहमद कमाल हशमी
ग़ज़ल
मिरे लहू से है इक रंग-ए-नौ-बहार-ए-ग़ज़ल
ग़रीब-ए-शहर हूँ लेकिन हूँ शहर-यार-ए-ग़ज़ल
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
मिरे लहू से है इक रंग-ए-नौ बहार-ए-ग़ज़ल
ग़रीब-ए-शहर हूँ लेकिन हूँ शहर-यार-ए-ग़ज़ल