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ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
चाँद बिना हर दिन यूँ बीता जैसे युग बीते
मेरे बिना किस हाल में होगा कैसा होगा चाँद
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मोअर्रिख़ की क़लम के चंद लफ़्ज़ों सी है ये दुनिया
बदलती है हर इक युग में हमारी दास्ताँ और हम
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
यहाँ तो सब की ख़्वाहिश एक सी है रोटियाँ, सिक्के
मेरे युग में नहीं ख़्वाब-ए-जवानी माँगने वाले
मंज़र भोपाली
ग़ज़ल
प्रेम वारबर्टनी
ग़ज़ल
न जाने कितने युग ढले न जाने कितने दुख पले
घरों में हाँडियों तले किसी को कुछ पता नहीं