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ग़ज़ल
इज़्ज़त उसी की अहल-ए-नज़र की नज़र में है
सब कुछ बशर में है जो मोहब्बत बशर में है
सय्यद अमीर हसन मारहरवी दिलेर
ग़ज़ल
उल्टी पड़ती है हर इक काम की तदबीर अबस
मुझ से बरगश्ता हुई है मिरी तक़दीर अबस
सय्यद मसूद हसन मसूद
ग़ज़ल
मिरी जाँ सरसरी मिलने से क्या मालूम होता है
परखने से बशर खोटा खरा मालूम होता है
सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी
ग़ज़ल
ख़राबे में मोहब्बत का गुज़र है कि नहीं
ख़ैर दुनिया में ब-अंदाज़ा-ए-शर है कि नहीं
सय्यद मंज़र हसन दसनवी
ग़ज़ल
तुम आए नहीं तो हम अपनी महफ़िल को सजा कर क्या करते
रौनक़ तुम ही थे महफ़िल की औरों को बुला कर क्या करते