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ग़ज़ल
कुछ भी हो क़त्ल-गाह में हुस्न-ए-बदन का है ज़रर
हम न कहीं से आएँगे दोश पे सर लिए बग़ैर
जौन एलिया
ग़ज़ल
ये बाज़ार-ए-नफ़अ-ओ-ज़रर है यहाँ बे-तवाज़ुन न होना
समेटो अगर सूद तो ध्यान रखना ज़ियाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
अम्मार इक़बाल
ग़ज़ल
किसी को कोसते क्यूँ हो दुआ अपने लिए माँगो
तुम्हारा फ़ाएदा क्या है जो दुश्मन का ज़रर होगा
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
बजाए हम-सफ़री इतना राब्ता है बहुत
कि मेरे हक़ में तिरी बे-ज़रर दुआ है बहुत
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
ज़रा आगे चलोगे तो इज़ाफ़ा इल्म में होगा
मोहब्बत पहले पहले बे-ज़रर महसूस होती है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
हम न देखेंगे तो ये मंज़र बदल जाएँगे क्या
देखना ठहरा तो क्या नफ़-ओ-ज़रर आँखों का है