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ग़ज़ल
अपनी फ़ितरत में भी रौशन होंगे लेकिन ऐ 'ज़मीर'
मेरी रातों से भी तारों ने चमक पाई बहुत
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
अपने हिस्से की मसर्रत भी अज़िय्यत है 'ज़मीर'
हर नफ़स पास-ए-ग़म-ए-हम-नफ़साँ रखते हैं
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
ज़ीनत लुग़त की हर्फ़-ए-हक़ीक़त है ऐ 'ज़मीर'
बातिल का हर फ़रेब-ए-हसीं खा रहे हैं हम
ख़्वाजा ज़मीर
ग़ज़ल
'ज़मीर' इक क़ैद-ए-ना-महसूस को महसूस करता हूँ
किसी नादानी-ए-ज़ंजीर-ए-पा को देखता हूँ मैं
सय्यद ज़मीर जाफ़री
ग़ज़ल
ज़ब्त-ए-तूफ़ाँ की तबीअ'त ही का इक रुख़ है 'ज़मीर'
मौज आवाज़ बदल लेती है तूफ़ाँ होते