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ग़ज़ल
तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है
ए'जाज़ बड़ में है तो करामत ज़टल में है
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बहुत आए हमदम ओ चारा-गर जो नुमूद-ओ-नाम के हो गए
जो ज़वाल-ए-ग़म का भी ग़म करे वो ख़ुश-आश्ना कोई और है