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ग़ज़ल
रौशनी देते रहेंगे मुझ को ज़ख़्मों के चराग़
अब अँधेरे में कहीं से ज़ौ-फ़िशानी हो न हो
एहतराम इस्लाम
ग़ज़ल
ऐसा बिखरा हर तरफ़ तेरे हसीं चेहरे का नूर
महव-ए-हैरत चाँदनी की ज़ौ-फ़िशानी हो गई
शाहरुख़ साहिल तुलसीपुरी
ग़ज़ल
ये मेरे अश्क-ए-आवारा सियह-रातों में जुगनू हैं
सजा ले अपनी पलकों पर उन्हें मैं ज़ौ-फ़िशानी है
ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
ग़ज़ल
चराग़-ए-रहगुज़र हूँ मैं हक़ीक़त है मगर ये भी
कभी सूरज भी मुझ से ज़ौ-फ़िशानी माँग लेता है
अनवर कमाल अनवर
ग़ज़ल
बहारों का लहू शामिल है उस की ज़ौ-फ़िशानी में
कि गुल खिल कर अगर मुरझा गया तो दर्द होगा ही
मोहम्मद ग़ुलाम नूरानी
ग़ज़ल
उभर रही है किरन सुब्ह-ए-ज़ू-फ़िशाँ के लिए
सँवर रही है फ़ज़ा हुस्न-ए-गुलसिताँ के लिए
अख़गर पानीपती
ग़ज़ल
वक़्त हो रहा है फिर ज़ौ-फ़िशाँ हथेली पर
नक़्श हैं मुक़द्दर की सुर्ख़ियाँ हथेली पर