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ग़ज़ल
नज़र के साथ ज़ौक़-ए-दूर-बीनी भी तो दे या-रब
फ़क़त इन कोर-चश्मों को नज़र देने से क्या होगा
बिसमिल देहलवी
ग़ज़ल
ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी ने दिखलाई 'सहर' अपनी बहार
हुस्न के मा'सूम चेहरे पर निखार आ ही गया
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
गर फ़रोग़-ए-ज़िंदगी ख़ुद को मिटा देने में है
ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी मिटा कर फ़िक्र-ए-इंसाँ कीजिए
इशरत अनवर
ग़ज़ल
निगाह-ए-चश्म-ए-हासिद वाम ले ऐ ज़ौक़-ए-ख़ुद-बीनी
तमाशाई हूँ वहदत-ख़ाना-ए-आईना-ए-दिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
समा सकता नहीं पहना-ए-फ़ितरत में मिरा सौदा
ग़लत था ऐ जुनूँ शायद तिरा अंदाज़ा-ए-सहरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शब ख़ुमार-ए-हुस्न-ए-साक़ी हैरत-ए-मयख़ाना था
आप ही मय आप ही ख़ुम आप ही पैमाना था
एहसान दानिश
ग़ज़ल
सूरत-ए-हाल अब तो वो नक़्श-ए-ख़याली हो गया
जो मक़ाम मा-सिवा था दिल में ख़ाली हो गया
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
दिल-ए-बद-ख़्वाह में था मारना या चश्म-ए-बद-बीं में
फ़लक पर 'ज़ौक़' तीर-ए-आह गर मारा तो क्या मारा
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
उस बिन रहा चमन में भी मैं 'ज़ौक़' दिल-ख़राश
नाख़ुन से तेज़-तर मुझे हर बर्ग-ए-गुल हुआ
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
बज़्म-ए-‘अज़ा बनी हुई है बज़्म-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़
दौर-ए-नशात मोजिब-ए-दौरान-ए-सर है आज
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
तेरे जलवों का भरम खोल ही देता लेकिन
चश्म-ए-बीना तो मिली ज़ौक़-ए-नज़ारा न मिला
मुख़्तार आशिक़ी जौनपुरी
ग़ज़ल
दम तोड़ दिया ज़ौक़-ए-तमन्ना ने तड़प कर
क़ातिल की नज़र जाम बनी है तो मुझे क्या