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ग़ज़ल
घड़ी भर रंग निखरा सूरत-ए-गुल-हा-ए-तर मेरा
उसी हस्ती पे उस गुलशन में था ये शोर-ओ-शर मेरा
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
हँस दिए ज़ख़्म-ए-जिगर जैसे कि गुल-हा-ए-बहार
मुझ पे माइल है बहुत नर्गिस-ए-शहला-ए-बहार
सुहैल काकोरवी
ग़ज़ल
हाए तौहीन-ए-जुनूँ 'नश्तर' कि अरबाब-ए-जुनूँ
ख़ुश्क काँटे हैं जिन्हें गुल-हा-ए-तर कहने लगे
शकील नश्तर
ग़ज़ल
मुआ'फ़ रख जो है गुल-हा-ए-तर से प्यार मुझे
कि उन में रंग तिरा कुछ है कुछ है बू तेरी