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ग़ज़ल
नई बज़्म-ए-ऐश-ओ-नशात में ये मरज़ सुना है कि आम है
किसी लोमड़ी को मलेरिया किसी मेंठकी को ज़ुकाम है
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
कभी कभी तो फूल की ख़ुशबू भी कर देती है ज़ुकाम
कभी कभी तो शराब भी होती है जीवन का वरदान
कृष्ण कुमार तूर
ग़ज़ल
न जाने पतली गली से वो कब निकल लेगा
नहीं है टी बी या बी पी मगर ज़ुकाम तो है
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
दूर हो गर शाम्मा से तेरे ग़फ़लत का ज़ुकाम
तू उसी की बू को पावे हर गुल-ओ-सौसन के बीच
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
जब कभी बुलबुल मुझे होता है नज़ला और ज़ुकाम
बस ज़रा दो घूँट वक़्त-ए-शाम पी लेता हूँ मैं