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ग़ज़ल
पय-ए-दफ़ा-ए-गज़ंद-ए-ज़ुल-फ़िक़ार अबरू तिरे मुख पर
मिज़ा कूँ कर ज़बाँ करती हैं दम नाद-ए-अली अँखियाँ
अब्दुल वहाब यकरू
ग़ज़ल
है ये अबरू का इशारा थी जहाँ की ज़ुल-फ़िक़ार
ऐ 'शरफ़' मैं उस सुलह-ख़ानी की तलवारों में हूँ
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ की चमक पैकर-ए-सीमीं की दमक
दीप-माला है सर-ए-गंग-ओ-जमन क्या कहना
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
यही मंशूर-ए-मोहब्बत है कि वो पैकर-ए-ज़ुल्म
जिस को नफ़रत से नवाज़े मैं उसे प्यार करूँ
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
दिल गुदाज़ शीशा भी संग भी है आहन भी
पैकर-ए-मोहब्बत भी दोस्त भी है दुश्मन भी