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नज़्म
ये कैफ़-ओ-रंग-ए-नज़ारा ये बिजलियों की लपक
कि जैसे कृष्ण से राधा की आँख इशारे करे
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
जो सुन लेता है गोश-ए-दिल से अफ़्साना कनहैया का
वो हो जाता है सच्चे दिल से दीवाना कनहैया का
जूलियस नहीफ़ देहलवी
नज़्म
और 'कृष्ण-चंद्र' 'मंटो' ज़िंदा कहानियाँ हैं
लफ़्ज़ों के आइने में हुस्न-ए-बयाँ का जादू
फ़रहत एहसास
नज़्म
हैं जसोधा के लिए ज़ीनत-ए-आग़ोश कहीं
गोपियों के भी तसव्वुर से हैं रू-पोश कहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
'कृष्ण' की बंसी ने फूंकी है रूह हमारी जानों में
'गौतम' की आवाज़ बसी है महलों में मैदानों में
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
राम और कृष्ण के जीवन से तुझे प्यार मगर
बादा-ए-हुब्ब-ए-मोहम्मद से भी सरशार मगर