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नज़्म
सच है 'अफ़ज़ल' को तिरे इश्क़ ने बर्बाद किया
मर्तबा इस का भी था वर्ना बुलंद-ओ-बाला
अफ़ज़ल पेशावरी
नज़्म
तो इंसान जो ज़िंदगी का अफ़ज़ल-तरीन नमूना हैं
वो इजतिमाई ख़ुद-कुशी के रास्ते पर क्यूँ चल निकले हैं
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
ज़िंदगी तुझ से तवक़्क़ो तो बहुत थी लेकिन
तिरे फ़ैज़ान-ए-दिल-आवेज़ के दामन में मगर