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नज़्म
'असगर'-ओ-'अकबर'-ओ-'अहसन' की भी दम-साज़ हूँ मैं
जिस को 'तुलसी' ने बजाया था वही साज़ हूँ मैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
तुम्हें इस इंक़िलाब-ए-दहर का क्या ग़म है ऐ 'अकबर'
बहुत नज़दीक हैं वो दिन कि तुम होगे न हम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
वो बाब-उल-इल्म हो या मस्जिद-ए-सिद्दीक़-ए-अकबर हो
हुसैनाबाद हो या वो मिरी फ़ारूक़ नगरी हो
इशरत आफ़रीं
नज़्म
ब-क़ौल-ए-हज़रत-ए-अकबर फ़ना में है बक़ा मुज़्मर
उसे जीना नहीं आता जिसे मरना नहीं आता
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
आप को मेरा मम्नून-ए-एहसान होना चाहिए
कि में आप के लिए एक ऐसा मुजर्रब नुस्ख़ा तज्वीज़ कर रहा हूँ
शौकत आबिदी
नज़्म
अपनी मन-मानी ही आख़िर में करेंगे अब तो
दहर को वादा-ए-पुर-कैफ़ से मिन्नत-कश-ए-एहसान करो
मख़मूर जालंधरी
नज़्म
है मुसल्लम अबदी ख़ालिक़-ए-अकबर का वजूद
रोज़-ए-रौशन में हो जैसे शह-ए-ख़ावर का वजूद