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नज़्म
'वारिस-शाह' और 'बुलहे-शाह' और 'बाबा-फ़रीद'?
चलिए जाने दीजे इन बातों में क्या रक्खा है
सलीम अहमद
नज़्म
कश्ती का भरोसा न खिवय्ये का सहारा
हिम्मत के शनावर को भँवर भी है किनारा
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
नज़्म
चार शख़्स आपस में थे इक रोज़ मसरूफ़-ए-नमाज़
बोल उठा उन में से ना-गहाँ एक मर्द-ए-हीला-बाज़
मोहम्मद अबदुल वहाब
नज़्म
बूढ़ा पनवाड़ी उस के बालों में माँग है न्यारी
आँखों में जीवन की बुझती अग्नी की चिंगारी
मजीद अमजद
नज़्म
इक राज़-ए-तमन्ना कि जो होंटों पे चला आए
इक हर्फ़-ए-मुकर्रर कि जो बातों में कहा जाए
अख़लाक़ अहमद आहन
नज़्म
क्या नग़्मा-हा-ए-कैफ़ का दरिया बहा गया
ख़ुद हुस्न को जहाँ में हसीं-तर बना गया