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नज़्म
उन में काहिल भी हैं ग़ाफ़िल भी हैं हुश्यार भी हैं
सैकड़ों हैं कि तिरे नाम से बे-ज़ार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिगर शाख़-ए-ख़लील अज़ ख़ून-ए-मा नमनाक मी गर्दद
ब-बाज़ार-ए-मोहब्बत नक़्द-ए-मा कामिल अय्यार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लुत्फ़-ए-गोयाई में तेरी हम-सरी मुमकिन नहीं
हो तख़य्युल का न जब तक फ़िक्र-ए-कामिल हम-नशीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शम-ए-हक़ से जो मुनव्वर हो ये वो महफ़िल न थी
बारिश-ए-रहमत हुई लेकिन ज़मीं क़ाबिल न थी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ इश्क़-ए-अज़ल-गीर ओ अबद-ताब, मेरे भी हैं कुछ ख़्वाब
वो ख़्वाब हैं आज़ादी-ए-कामिल के नए ख़्वाब
नून मीम राशिद
नज़्म
धुआँ सा अब नज़र आता है मुझ को माह-ए-कामिल में
तुम्हारे साथ जितने दिन गुज़ारे याद आते हैं
शौकत परदेसी
नज़्म
हैं कहते नानक शाह जिन्हें वो पूरे हैं आगाह गुरु
वो कामिल-ए-रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे नाह गुरु
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तिरे लुत्फ़-ओ-अता की धूम सही महफ़िल महफ़िल
इक शख़्स था इंशा नाम-ए-मोहब्बत में कामिल
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
शम-ए-हक़ से जो मुनव्वर हो ये वो महफ़िल न थी
बारिश-ए-रहमत हुई लेकिन ज़मीं क़ाबिल न थी