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नज़्म
मैं ने जब पूछा कि रौशन चाँद से बढ़ कर है क्या
नाज़ से बोला वो बुत चेहरा मिरा चेहरा मिरा
सदा अम्बालवी
नज़्म
तिरे सोफ़े हैं अफ़रंगी तिरे क़ालीं हैं ईरानी
लहू मुझ को रुलाती है जवानों की तन-आसानी