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नज़्म
काश तू अपने गरेबान में मुँह डाले अगर
तू वो बे-बस है कि माचिस का जो हो दस्त-ए-निगर
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
है मेरी ज़िंदगी अब रोज़-ओ-शब यक-मज्लिस-ए-ग़म-हा
अज़ा-हा मर्सिया-हा गिर्या-हा आशोब-ए-मातम-हा
जौन एलिया
नज़्म
मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे
जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे