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नज़्म
हैं कहते नानक शाह जिन्हें वो पूरे हैं आगाह गुरु
वो कामिल-ए-रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे नाह गुरु
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
न पाक कोई न कोई नापाक कोई ऊँचा न कोई नीचा
गुरु का ये मय-कदा है इस जा हर इक को मिलता है जाम-ए-नानक
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
गुरु-नानक जिसे कहते हैं वो इक मर्द-ए-कामिल था
कि उस के पास सीने में तक़द्दुस-आफ़रीं दिल था
शातिर हकीमी
नज़्म
ज़िंदा-दिल पंजाब के बेटो तुम्हें मेरा सलाम
तुम परस्तार-ए-गुरू-नानक फ़िदा-ए-कृष्न-ओ-राम
अर्श मलसियानी
नज़्म
तिरी तौक़ीर से तौक़ीर-ए-हस्ती है गुरु-नानक
तिरी तनवीर हर ज़र्रे में बस्ती है गुरु-नानक
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
एक जिस्म-ए-ना-तवाँ इतनी दबाओं का हुजूम
इक चराग़-ए-सुब्ह और इतनी हवाओं का हुजूम
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
सिनान ओ गुर्ज़ ओ शमशीर ओ तबर ख़ंजर नहीं लाज़िम
बस इक एहसास लाज़िम है कि हम बुअदैन हैं दोनों