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नज़्म
ये कार-ख़ानों में लोहे का शोर-ओ-ग़ुल जिस में
है दफ़्न लाखों ग़रीबों की रूह का नग़्मा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
यूँही देखूँ जो राखी को तो ये रंगीन डोरा है
जो देखूँ ग़ौर से इस को तो है ज़ंजीर लोहे की
फौज़िया मुग़ल
नज़्म
दरिंदे सर झुका देते हैं लोहा मान कर इस का
नज़र सफ़्फ़ाक-तर इस की नफ़स मकरुह-तर इस का
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बे-ज़ुल्म-ओ-ख़ता जिस ज़ालिम ने मज़लूम ज़बह कर डाला है
उस ज़ालिम के भी लोहू का फिर बहता नद्दी-नाला है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो इज्ज़-ए-ग़ुरूर-ए-सुल्ताँ भी जिस के आगे झुक जाता था
वो मोम कि जिस से टकरा कर लोहे को पसीना आता था
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
कपड़े की ज़रूरत ही क्या है मज़दूरों को, हैवानों को
क्या बहस है, सर्दी गर्मी से लोहे के बने इंसानों को
जमील मज़हरी
नज़्म
लाखों टन ये लोहा कैसे आसमान में उड़ता है
बिजली कैसे जल उठती है पंखा कैसे चलता है