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नज़्म
आज शायद मंज़िल-ए-क़ुव्वत में तुम रहते नहीं
जिस की लाठी उस की भैंस अब किस लिए कहते नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो आप भी लूटा जाता है और लाठी-पाठी खाता है
जो जैसा जैसा करता है फिर वैसा वैसा पाता है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
खालिद इरफ़ान
नज़्म
जिस की लाठी उस की भैंस इस मिस्ल को सादिक़ समझ
ये समझ कर इस ख़ुदा-ए-पाक को राज़िक़ समझ
अर्श मलसियानी
नज़्म
हामी-ए-जौर-ओ-सितम हर तरह माला-माल था
जिस की लाठी थी उसी की भैंस थी ये हाल था
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
हाथ में लाठी पाँव में चप्पल तन पर एक लंगोटी
इस भेस में बापू ने सर की अज़्मत की चोटी
अताउर्रहमान तारिक़
नज़्म
अलिफ़ को कहते लाठी लेकिन बनते बड़े सियाने
हर फ़न मौला कहलाते हैं गढ़ते हैं अफ़्साने
मेहदी प्रतापगढ़ी
नज़्म
और अस्बाब सर पर धरे गाँव का रास्ता ले
कभी कोई चरवाहा कंधे पे लाठी रखे और हाथों को लाठी पे लटकाए